चलो मन से बात करते हैं,
वक्त की जमी परतों को खरोंचते हैं..
कुछ पुराने रिश्तों से गले मिलकर,
माज़ी के पन्नों को उलटते हैं..
बचपन तो कम्बख़त बूढ़ा हो चला,
चलो थोड़ा सहारा दे उसे उठाते हैं..
आल्बम में सजाई तस्वीरों के पीछे
जमी हुईं यादों से गुफ़्तगू करते हैं..
उन रिश्तों,यादों,लम्हों को समेटकर
चलो आज मन से बात करते हैं।
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