फिर आज वह ज़िंदगी जी लूँ,
खुशियों को अपने माज़ी से छीन लूँ,
कूछ साल फ़क़ीर की झोली में सदक़ा करूँ,
एक बार अपनी बेटी संग सहेली बन खेलूँ।
- 16th March 2015
खुशियों को अपने माज़ी से छीन लूँ,
कूछ साल फ़क़ीर की झोली में सदक़ा करूँ,
एक बार अपनी बेटी संग सहेली बन खेलूँ।
- 16th March 2015
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